पटना. बिहार की सियासत में प्रशांत किशोर की एंट्री से एक और युवा-नेता की आमद हो गई है. गिनती करें तो तेजस्वी यादव, चिराग पासवान, कन्हैया कुमार, मुकेश सहनी, नितिन नवीन जैसे युवा नेताओं की लिस्ट लंबी है. प्रशांत किशोर उम्र में इन सभी नेताओं से सीनियर हैं. सक्रिय राजनीति के अनुभव की बात करें, तो बात अलग है. इनमें सबसे छोटे तेजस्वी हैं, जिनकी उम्र अभी महज 32 साल की है, वहीं पीके 45 वर्ष के हैं. गौर करने वाली बात यह है कि प्रशांत किशोर की आमद से पहले ही बिहार में प्रशांत-चिराग-मुकेश जैसे नेताओं के बीच आपसी ‘समन्वय’ की कयासबाजियां लगनी शुरू हो चुकी हैं. ये कयास धरातल पर उतरते हैं या नहीं, यह तो भविष्य के गर्भ में है. लेकिन नीतीश कुमार (71), लालू यादव (73) या सुशील मोदी (70) जैसे नेताओं के बीच जिस तरह पिछले कुछ महीनों के दौरान इन युवा नेताओं ने अपनी पहचान बनाई है, वह काबिल-ए-गौर है.
प्रशांत किशोर ने बीते दिनों सक्रिय राजनीति में उतरने के ऐलान के बाद गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि नीतीश कुमार और लालू यादव के तीन दशकों के कार्यकाल के बाद भी आज बिहार पिछड़ा हुआ है. किशोर ने लालू यादव के कार्यकाल के दौरान सामाजिक न्याय और नीतीश के सुशासन के दावों पर सवाल उठाते हुए कहा कि बिहार के लिए ‘नई सोच और नए प्रयास’ की जरूरत है. उन्होंने ‘जन सुराज’ पार्टी बनाने से पहले बिहार के लोगों से विमर्श की बात कही है. इसके लिए चंपारण से 3000 किलोमीटर की पदयात्रा शुरू करने का ऐलान भी किया है. किशोर की राजनीतिक योजना क्या और कैसी होगी, यह आने वाले समय में पता चलेगा. बहरहाल, यह सवाल तो है ही कि प्रशांत किशोर या तेजस्वी या फिर चिराग और अन्य युवा नेताओं की फौज के रहते हुए भी बिहार आज देश में पिछड़े राज्यों में क्यों गिना जाता है. क्या प्रशांत किशोर की आमद से बिहार में नए राजनीतिक समीकरण बनेंगे, ये युवा चेहरे आने वाले वर्षों में बिहार की राजनीति को किस दिशा में ले जाएंगे, इस पर देश की नजरें रहेंगी.
यंगिस्तान बिहार के यंग लीडर
तेजस्वी यादव: अपने पिता और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की उंगली पकड़कर सियासत में एंट्री मारने वाले तेजस्वी यादव, बिहार के युवा नेताओं की लिस्ट में सबसे छोटे यानी सिर्फ 32 साल के हैं. साल 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद बिहार के सबसे प्रभावशाली युवा नेताओं की लिस्ट में सबसे पहले नंबर पर हैं. राजद की राजनीतिक विरासत संभाल रहे तेजस्वी को शुरुआत में ‘कमतर’ साबित करने की कोशिश की गई, लेकिन अपनी मेहनत से उन्होंने खुद को ‘लंबी रेस का घोड़ा’ साबित करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है. उनकी रणनीतियों, बयानों और सधी हुई पॉलिटिक्स करने के अंदाज ने सबको लाजवाब भी किया और चौंकाया भी है.
प्रशांत किशोर: 2014 से भारतीय राजनीति में चुनावी रणनीतिकार के तौर पर पहचान बनाने वाले प्रशांत किशोर ने कोरोनाकाल से पहले नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड ज्वाइन की थी. देश के कई राज्यों में अलग-अलग पार्टियों के लिए चुनावी रणनीति बनाकर उन्हें जिताने वाले किशोर, जदयू में लंबी पारी नहीं खेल सके और वापस अपने ‘आई-पैक’ में लौट गए. बंगाल चुनाव के बाद उन्होंने बतौर चुनावी रणनीतिकार के अपने पेशे को छोड़ने का ऐलान किया. फिर कांग्रेस में जाने की अटकलें लगीं, वापस ‘रणनीतिकार’ की पारी शुरू करने जैसे दावे हुए, लेकिन सियासी हलकों में ‘पीके’ नाम से पहचाने जाने वाले 45 वर्षीय किशोर ने बिहार से राजनीतिक पारी शुरू करने का ऐलान कर दिया.
चिराग पासवान: दलित नेता, पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत संभाल रहे चिराग पासवान अभी उम्र के दूसरे पड़ाव की दहलीज पर हैं. वे 39 साल के हैं और समर्थकों के बीच उन्होंने ‘युवा बिहारी’ के नाम से पहचान बनाई है. साल 2019 के लोकसभा और 2020 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव के बाद से वे लगातार अपनी लोक जनशक्ति पार्टी को व्यापक जनाधार वाला दल बनाने की कोशिश में जुटे हैं. एनडीए में रहते हुए भी उनकी खुद की पहचान बनाने की ‘कश्मकश’ जारी है.
कन्हैया कुमार: तेजस्वी यादव से उम्र में महज 3 साल बड़े कन्हैया कुमार, अपनी धारदार वक्तृता के लिए जाने जाते हैं. जेएनयू छात्रसंघ का अध्यक्ष, फिर कम्युनिस्ट पार्टी और अब कांग्रेस में आ चुके 35 वर्षीय कन्हैया कुमार, अभी तक राजनीतिक जमीन बनाने की जद्दोजहद कर रहे हैं. हालांकि उन्होंने भाजपा नेता गिरिराज सिंह के खिलाफ लोकसभा का चुनाव भी लड़ा, लेकिन खेत रहे. इसके बाद ही कांग्रेस में शामिल हुए, इन दिनों कयास लग रही है कि उन्हें कभी भी पार्टी बिहार की कमान सौंप सकती है.
नितिन नवीन: भाजपा के दिग्गज नेता रहे नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा के बेटे और वर्तमान में बिहार सरकार में मंत्री पद संभाल रहे नितिन नवीन, प्रदेश की राजनीति में युवा नेताओं की लिस्ट में तेज-तर्रार पॉलिटिशियन के रूप में जाने जाते हैं. जमीनी पकड़ और धारदार बयानों से पहचान बनाने वाले नितिन, धीरे-धीरे ही सही मगर भाजपा की सेकेंड-लाइन में जगह बनाने में सफल रहे हैं. राजधानी पटना में रहकर ही उन्होंने सियासत का ककहरा सीखा है, जिसकी झलक में उनमें दिख जाती है.
मुकेश सहनी: बॉलीवुड फिल्मों की सेट डिजाइन करने वाले मुकेश सहनी पिछले लगभग एक दशक से बिहार की राजनीति में अपने को ‘सेट’ करने के लिए सक्रिय हैं. निषाद यानी मल्लाह जाति के नेता के तौर पर राजनीति शुरू करने वाले 41 साल के मुकेश सहनी ने विकासशील इंसान पार्टी बनाकर पहले महागठबंधन का खेमा पकड़ा, फिर मौका देखकर एनडीए में शामिल हो गए. हालांकि जिस नाटकीयता से उन्होंने एनडीए की डोर थामी थी, उससे कहीं अधिक नाटकीय रूप से वे उससे पलायन भी कर गए. बिहार में हाल के दिनों में हुए सियासी उठापटक के दौरान उनकी पार्टी टूटकर बिखर गई, जिन्हें वापस जोड़ने की कवायद में इन दिनों वे जुटे हुए हैं.
पुष्पम प्रिया चौधरी: 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव से एक साल पहले बतौर ‘मुख्यमंत्री उम्मीदवार’ सियासत में धमाकेदार एंट्री करने वाली 34 साल की पुष्पम प्रिया चौधरी ‘नए जमाने’ की पॉलिटिक्स करना चाहती हैं. लंदन से पढ़कर लौटीं जदयू नेता की बेटी भी जमीनी राजनीति करने की जद्दोजहद कर रही हैं. आम राजनीतिक दलों से अलग ‘प्लूरल्स’ नाम से अपनी पार्टी बनाकर वे सामाजिक कार्यकर्ताओं, आरटीआई एक्टिविस्ट आदि को जोड़ रही हैं, ताकि बिहार की राजनीति में माकूल परिवर्तन ला सके. विधानसभा चुनाव से पहले पूरे बिहार का दौरा कर उन्होंने इसकी झलक भी दिखाई है.
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Tags: Bihar News, Bihar politics
FIRST PUBLISHED : May 05, 2022, 13:54 IST