42.3 C
Khagaria
Tuesday, April 22, 2025

होली और जुम्मा भाईचारे और मोहब्बत का अनोखा संगम सैय्यद आसिफ इमाम काकवी

जगदूत न्यूज अनिल कुमार गुप्ता ब्यूरो प्रमुख जहानाबाद भारत की खूबसूरती उसकी गंगा-जमुनी तहज़ीब में है, जहां हर त्योहार प्यार और सौहार्द्र का संदेश देता है। होली और जुम्मा का एक साथ आना कोई नई बात नहीं, बल्कि यह उस आपसी मोहब्बत और भाईचारे का जीता-जागता उदाहरण है, जिसे सदियों से भारतीय समाज ने संजो कर रखा है। इतिहास गवाह है, हमने हमेशा मिलकर जश्न मनाया! यह पहली बार नहीं है जब होली और जुम्मा एक साथ पड़े हैं। 1949 से लेकर 2025 तक, हम 11 बार इसे साथ मना चुके हैं। तब भी हमने मोहब्बत से त्योहार मनाया था और आज भी वही जज़्बा कायम है। लेकिन अफ़सोस, आज कुछ फिरक़ापरस्त ताक़तें हमारे बीच नफरत का ज़हर घोलना चाहती हैं। हमें उनसे होशियार रहना होगा और मिल-जुलकर यह साबित करना होगा कि भारत की असली ताकत इसकी एकता में है। इस बार हिंदुस्तान की फ़िज़ाओं में एक अनोखी मिठास घुली है। रमज़ान और होली का यह संगम एक खूबसूरत पैग़ाम लेकर आया है भाईचारे, मोहब्बत और इंसानियत का। जब सियासत नफ़रत का ज़हर घोलने में लगी हो, तब यह दो मुबारक मौके हमें याद दिलाते हैं कि हमारी असली पहचान मोहब्बत और आपसी सौहार्द में है। रमज़ान इबादत, सब्र और खुदा की रहमत पाने का महीना है। यह वो वक्त होता है जब इंसान अपने गुनाहों की माफी मांगता है, खुद को पाक करता है और सही राह पर चलने का संकल्प लेता है। दूसरी ओर, होली रंगों का त्योहार है, जो न केवल उमंग और उल्लास का प्रतीक है, बल्कि बुराई पर अच्छाई की जीत और एकता का संदेश भी देता है। इधर राजनीति हमें बांटने की कोशिश कर रही है, नफरतें फैलाई जा रही हैं, और उधर खुदा हमें फिर से याद दिला रहा है कि हम सब एक हैं। कुदरत बार-बार हमें साथ रहने के मौके देती है, पर कुछ लोग हमें मज़हब के नाम पर बाँटना चाहते हैं। जिस तरह 1949, 1955, 1960, 1966, 1978, 1989, 1994, 2005, 2008, 2016 और अब 2025 में हमने मिलकर त्योहार मनाए, उसी तरह हमें आज भी एकजुट रहना है। ना कोई भेदभाव, ना कोई नफरत – सिर्फ प्यार, शांति और एकता फिरक़ापरस्त ताकतों से सतर्क रहें, अफवाहों से बचें और साज़िशों को नाकाम करें, मीडिया और कुछ समाचारपत्र इस नफरत को और हवा दे रहे हैं, मगर हमें इससे बचना होगा। हमें अपने मुल्क की खूबसूरती को बचाना होगा, जो हिंदू-मुसलमान, सिख-ईसाई की मिली-जुली तहज़ीब में बसती है। जिस तरह होली में रंग लगाकर हम हर गिले-शिकवे मिटाने और नयी शुरुआत करने का प्रण लेते हैं, उसी तरह रमज़ान में रोज़ा रखकर अल्लाह की इबादत करते हैं और नेक राह पर चलने की दुआ माँगते हैं। इन दोनों का संदेश एक ही है—अमन, प्यार और भाईचारा। तो क्यों न इस बार हम होली के इन लाल-गुलाबी रंगों को अपने दिलों तक पहुँचने दें? क्यों न इस बार की होली सिर्फ कपड़ों पर नहीं, हमारे दिलों में भी टिके? क्यों न यह मोहब्बत का रंग होली से होते हुए ईद तक पहुँचे? ख़त्म हो जिससे नफरत का अंधेरा, हम वही रंग खेलें और वही होली मनाएँ। फिर मोहब्बत से महक जाए फ़ज़ा हिंदुस्तान की! हिंदुस्तान की मिट्टी अनूठी है। यहाँ की तहज़ीब वो खुशबू है जो हर रंग को अपने में समा लेती है। यह वही सरज़मीं है, जहां रंगों की कोई ज़ात नहीं होती, इबादत की कोई सरहद नहीं होती। हमें इसी खूबसूरती को बनाए रखना है। नफ़रत की आंधी में इस चिराग़ को बुझने नहीं देना है। इस बार होली और रमज़ान को साथ मनाकर दुनिया को दिखा दो कि हिंदुस्तान सिर्फ़ एक देश नहीं, बल्कि मोहब्बत की ज़िंदा मिसाल है।

Prabhu Jee
Prabhu Jeehttp://www.jagdoot.in
ब्यूरो चीफ, खगड़िया (जगदूत न्यूज)
सम्बंधित खबरें

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

रिपोर्टर की अन्य खबरें
नई खबरें