जगदूत न्यूज अनिल कुमार गुप्ता ब्यूरो प्रमुख जहानाबाद जैसे-जैसे गर्मी का पारा चढ़ रहा है, वैसे-वैसे आमजन, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोग, भारी और सिंथेटिक कपड़ों की तुलना में *खादी* जैसे हल्के, आरामदायक और त्वचा-सुलभ वस्त्रों की ओर तेजी से आकर्षित हो रहे हैं। खादी न केवल शरीर को शीतलता देने वाला कपड़ा है, बल्कि यह पर्यावरण के अनुकूल, टिकाऊ और पारंपरिक भारतीय हस्तशिल्प का प्रतीक भी है। इसकी विशेषता यह है कि यह हाथ से कताई और बुनाई से तैयार किया जाता है, जिससे इसमें प्राकृतिक रूप से ‘ब्रीदेबिलिटी’ बनी रहती है—जो गर्मियों में शरीर को राहत प्रदान करती है। खादी मॉल, पटना** में इस समय गर्मियों के लिए *कुर्ता- कुरती सेट, कॉटन और खादी कॉटन साड़ियाँ, गमछा, ड्रेस, काफ़्तान, को-ऑर्ड सेट्स, शर्ट* और *इंडो-वेस्टर्न परिधान* उपलब्ध हैं। ये परिधान न केवल देखने में आकर्षक हैं, बल्कि पहनने में भी अत्यंत आरामदायक हैं। इस संबंध में *खादी मॉल, पटना* के मॉल प्रबंधक श्री रमेश चौधरी ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में गर्मियों के मौसम में खादी परिधानों की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। उन्होंने कहा, *“लोग अब गर्मियों में खादी कपड़ों की खरीदारी ज़्यादा करते हैं, क्योंकि यह न केवल शरीर को राहत देता है, बल्कि आधुनिक फैशन के अनुरूप भी है। यहाँ केवल परिधान ही नहीं, बल्कि गर्मी से राहत देने वाले कई स्वदेशी खाद्य उत्पाद भी उपलब्ध हैं, जैसे कि मटका दही, जाता का पीसा हुआ सत्तू,मैंगो,लीची जूस आदि। आज की युवा पीढ़ी खादी को केवल पारंपरिक परिधान नहीं, बल्कि एक फैशन स्टेटमेंट और जीवनशैली का हिस्सा मान रही है। चिलचिलाती गर्मी और 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जाते तापमान में खादी की मांग केवल ग्रामीण क्षेत्रों तक सीमित नहीं रही, बल्कि महानगरों, कॉर्पोरेट वर्गों और कॉलेज जाने वाली युवा पीढ़ी के बीच भी तेज़ी से बढ़ रही है।बोर्ड का लक्ष्य है कि इस बढ़ती रुचि को वोकल फॉर लोकल’* अभियान से जोड़ा जाए, जिससे अधिक से अधिक स्थानीय कारीगरों को रोज़गार प्राप्त हो और खादी को राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि वैश्विक मंच पर भी एक सम्मानजनक स्थान प्राप्त हो।